शिक्षा वरदान या अभिशाप
शिक्षा वरदान या अभिशाप
शिक्षा अर्थात हमारा पढ़ा लिखा होना हमें अक्षर ज्ञान होना अब जो हमें यह शिक्षा मिली है इसके क्या लाभ है और क्या हानियां हैं इसी पर आज हम जानेंगे ये मनुष्य के लिए वरदान है या अभिशाप है जैसा कि हम वर्तमान समय में देख रहे हैं बच्चे से लेकर बूढ़े तक सब शिक्षित हो रहे हैं बुड्ढों में जो कोई अशिक्षित है तो उसे भी प्रोड शिक्षा द्वारा शिक्षित किया जा रहा है अब जो हम सब लोग इतने पड़ गए हैं इसका क्या लाभ है?
शिक्षा के लाभ इसका लाभ यह है कि हम सही गलत की पहचान कर सकते हैं सच और झूठ आसानी से पहचान सकते हैं किसी भी कार्य को आसानी से समझ कर उसे सही ढंग से निपटा सकते हैं और शिक्षा का एक लाभ यह भी है कि हम अंधविश्वास से दूर हो गए हैं किसी पर भी हम अंधाधुन विश्वास नहीं कर सकते हम उसे जांच कर समझ कर उस पर विश्वास करते हैं शिक्षा में हमारा अंधविश्वास दूर कर दिया है प्राचीन काल में जब शिक्षा नहीं थी तब क्या होता था कि लोग किसी भी दंतकथा पर आसानी से विश्वास कर लेते थे बिना सोचे समझे किसी के भी झांसे में आ जाते थे लेकिन वर्तमान समय में सब समझदार हो गए हैं कोई भी निर्णय सोच समझ कर लेते हैं
*शिक्षा की हानियां*
अब शिक्षा की हानियां क्या है कुछ उस पर भी विचार करते हैं वर्तमान युग में हर तरफ लोग शिक्षित होकर पैसा कमाने की दौड़ में चल रहे हैं कोई भगवान को याद नहीं करता बड़े छोटे की कोई इलाज नहीं रही शिक्षित होकर हम अपनी संस्कृति अपने समाज की परंपराओं को भी भूलते जा रहे हैं एक तरह से हम चालाक बन गए हैं हर कोई अपना काम निकाल कर चलता बनता है अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए कुछ भी नहीं देखता वर्तमान की शिक्षा से शिक्षित युवा love marriage की तरफ अग्रसर हो रहे हैं जबकि हमारी सभ्यता इसका समर्थन नहीं करती फिल्मों को देखकर हमारे हमारा समाज भी करता जा रहा है हमारे बच्चे उसकी देखा देखी कर रहे हैं जिस तरह एक हीरो पड़ता है मोटरसाइकिल या कार से कोई स्टंट करता है अलग तरह से बालों को काटा ता है तो हमारे बच्चे भी उनकी देखा देखी कर रहे हैं फिल्मों में ऐसे अश्लील दृश्य दिखाए जाते हैं सभ्य समाज में कोई भी उसे देख कर अपना सिर शर्म से झुका ले
शिक्षा के द्वारा व्यक्ति में अपनी उन्नति तो की है लेकिन अपना आध्यात्मिक हास् भी कर लिया है वह परमात्मा से कोसों दूर हो गया है शिक्षा के द्वारा जो वास्तविक लाभ को भूल चुका है बस एक मात्र पैसा कमाना उद्देश्य रह गया है शिक्षा का ।
जीवन के हर पहलू में शिक्षा से हमारी समझ बढ़ी है लेकिन हम भगवान को भूल चुके हैं सिर्फ दुख में विपत्ति के समय ही भगवान याद आता है जबकि हमें उस परमात्मा की याद हमेशा करनी चाहिए यह शिक्षा पिछले तीन युगों(सतयुग त्रेता द्वापर) में नहीं थी
वर्तमान समय में लोग त्यौहार मना कर सुबह सुबह भगवान की आरती कर बस इतना ही कार्य कर संतुष्ट हैं उन्हें वास्तविक परमात्मा की जानकारी नहीं वह परमात्मा जिसने सर्व सृष्टि की रचना की है कोई नहीं जानता वर्तमान युग में जो हमारे पवित्र सद ग्रंथ हैं गीता जी वेद पुराण इन्हें कोई उठा कर नहीं देखता कि कौन है वास्तविक परमात्मा और हम किसकी पूजा कर रहे हैं?
कौन है पूर्ण परमात्मा कहां रहता है ?
कैसे मिलता है?
अब तक किस किसको मिला है ?
हमारा जन्म और मृत्यु क्यों होती है?
हम सभी देवी देवताओं की इतनी पूजा करते हैं फिर भी दुखी क्यों क्यो है ?
आखिर क्या है सही जीवन जीने की राह?
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अब शिक्षा की हानियां क्या है कुछ उस पर भी विचार करते हैं वर्तमान युग में हर तरफ लोग शिक्षित होकर पैसा कमाने की दौड़ में चल रहे हैं कोई भगवान को याद नहीं करता बड़े छोटे की कोई इलाज नहीं रही शिक्षित होकर हम अपनी संस्कृति अपने समाज की परंपराओं को भी भूलते जा रहे हैं एक तरह से हम चालाक बन गए हैं हर कोई अपना काम निकाल कर चलता बनता है अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए कुछ भी नहीं देखता वर्तमान की शिक्षा से शिक्षित युवा love marriage की तरफ अग्रसर हो रहे हैं जबकि हमारी सभ्यता इसका समर्थन नहीं करती फिल्मों को देखकर हमारे हमारा समाज भी करता जा रहा है हमारे बच्चे उसकी देखा देखी कर रहे हैं जिस तरह एक हीरो पड़ता है मोटरसाइकिल या कार से कोई स्टंट करता है अलग तरह से बालों को काटा ता है तो हमारे बच्चे भी उनकी देखा देखी कर रहे हैं फिल्मों में ऐसे अश्लील दृश्य दिखाए जाते हैं सभ्य समाज में कोई भी उसे देख कर अपना सिर शर्म से झुका ले
शिक्षा के द्वारा व्यक्ति में अपनी उन्नति तो की है लेकिन अपना आध्यात्मिक हास् भी कर लिया है वह परमात्मा से कोसों दूर हो गया है शिक्षा के द्वारा जो वास्तविक लाभ को भूल चुका है बस एक मात्र पैसा कमाना उद्देश्य रह गया है शिक्षा का ।
जीवन के हर पहलू में शिक्षा से हमारी समझ बढ़ी है लेकिन हम भगवान को भूल चुके हैं सिर्फ दुख में विपत्ति के समय ही भगवान याद आता है जबकि हमें उस परमात्मा की याद हमेशा करनी चाहिए यह शिक्षा पिछले तीन युगों(सतयुग त्रेता द्वापर) में नहीं थी
वर्तमान समय में लोग त्यौहार मना कर सुबह सुबह भगवान की आरती कर बस इतना ही कार्य कर संतुष्ट हैं उन्हें वास्तविक परमात्मा की जानकारी नहीं वह परमात्मा जिसने सर्व सृष्टि की रचना की है कोई नहीं जानता वर्तमान युग में जो हमारे पवित्र सद ग्रंथ हैं गीता जी वेद पुराण इन्हें कोई उठा कर नहीं देखता कि कौन है वास्तविक परमात्मा और हम किसकी पूजा कर रहे हैं?
कौन है पूर्ण परमात्मा कहां रहता है ?
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