पांडवों के अज्ञातवास की घटना ; पांडवों की कथा

पांडवों के अज्ञातवास की कथा 


ये घटना पांचों पांडवों के अज्ञातवास के समय की है सभी पाडंव अपने तेरह साल के वनवास के दौरान जंगलों में भ्रमण कर रहे थे ।
एक बार जब पांडव जंगल के विचरण कर रहे थे तो उन्हें प्यास लगी तो उन्होंने की तलाश शुरू की । पानी खोजने की जिम्मेदारी सबसे पहले सहदेव को सौंपी गई । सहदेव को ढूंढने पर पास ही एक जलाशय मिला फिर वो पानी लेने के लिए उस स्थान पर पहुँचे।
जलाशय के मालिक यक्ष ने आकाशवाणी द्वारा उन्हें रोकते हुए पांच प्रश्नों के उत्तर देने की शर्त रखी । सहदेव ने आकाशवाणी ओर यक्ष  की ओर बिना ध्यान दिए तालाब से जल लेने के लिए आगे बढ़े तो यक्ष ने तुरंत ही सहदेव के सांस छीन लिए।
बहुत देर तक सहदेव के न लौटने पर अर्जुन , भीम , नकुल ने पानी लाने की जिम्मेदारी उठाई । ये  सब भी इसी तालाब पर पहुँचे ओर सहदेव की तरह ही बिना आकाशवाणी की ओर ध्यान दिए जल लेने लगे तो यक्ष की शर्तों का पालन नही करने के कारण इन सब के स्वांस भी यक्ष ने छीन लिए।
पांडवों के अज्ञातवास की घटना

अंत मे परेशान होकर युधिष्ठिर खुद इन सब को ढूंढने निकले और इसी जलाशय पर आ पहुँचे।

अदृश्य यक्ष ने आकाशवाणी कर युधिष्ठिर को भी प्रशनो का उत्तर देकर पानी लेने की शर्त रखी 
फिर युधिष्ठिर ने कहा पूछो जो पूछना हो यक्ष ने पहला प्रश्न किया।
पांडवों का अज्ञातवास

भूमि से भारी क्या है ?
उतर मिला भूमि से भारी यानी बढ़कर माता होती है
आगे यक्ष ने पूछा आकाश से भी ऊंचा क्या है ?
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया 
पिता का कद गगन से भी ऊँचा होता है 
फिर यक्ष ने पूछा हवा से भी तीव्र कौन चलता है 
उत्तर मिला मन की गति हवा से भी तीव्र होती है।
कौन है जो सो जाने पर भी आँखे नही बंद करता?
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया मछली सोती है तब भी आँखे बंद नही करती।
अंत मे यक्ष ने पूछा
इस संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ?
युधिष्ठिर बोले की इस संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है कि हर रोज हम न जाने कितने व्यक्तियों को मरते हुए देखते हैं लेकिन खुद की मृत्यु की चिंता बिल्कुल भी नही करते
यही सबसे बड़ा आश्चर्य है 
इस तरह युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्नों के उत्तर दिए फिर यक्ष ने प्रसन्न होकर जलाशय से जल तो लेने दिया ही साथ मे युधिष्ठिर जी के सभी भाइयों (सहदेव, नकुल, भीम, अर्जुन) को भी जीवित कर दिया
अब महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि परमेश्वर कबीर साहेब जी कहते हैं
"मौत बिसारी बावरे,
अचरज किया कौन।
ये तन माटी में मिल जागा,
ज्यो आटे में लोंण।।
"कबीर, एक दिन ऐसा आवेगा,
सबसु पड़े बिछोह।
ये राजा राणा राव रंक,
भई सावधान क्यों न हो ।।"

पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब के मिलने और सतज्ञान प्राप्ति के बाद सन्त गरीबदास जी ने भी कहा है कि 
"बिन उपदेश अचम्भ है,
क्यो जीवत है प्राण।
भक्ति बिना कहा ठौर है,
ये नर नाही पाषण।।"

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